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कितने जायज हैं ईवीएम पर सवाल?

देश में प्रायः हर उस चुनाव के बाद विद्युतीय मतदान मशीन पर सवाल उठते रहे हैं, ज़ब किसी भी विपक्ष की सरकार नहीं बन पाती। इस बार भी लोकसभा चुनाव के बाद देर से ही सही, लेकिन ईवीएम पर सवाल उठने लगे हैं। हालांकि अभी स्वर इसलिए भी धीमे हैं, क्योंकि लोकसभा चुनाव में विपक्ष के राजनीतिक दलों ने अपनी ताकत बढ़ाकर एक मजबूत विपक्ष बनने का रास्ता तैयार कर लिया है। देश के राजनीतिक इतिहास में ऐसा दृश्य पहली बार दिख रहा है, ज़ब विपक्ष सरकार बनाने से दूर रहकर भी अपनी विजय का अहसास करा रहा है। इसके विपरीत सत्ता पाने वाले राजग इस बात की समीक्षा कर रहा है कि उसकी सीटें कम कैसे हो गईं। जबकि यह समीक्षा विपक्षी दलों को करना चाहिए। खैर… बात हो रही थी ईवीएम की। इस लोकसभा चुनाव से पूर्व भी भाजपा के नेतृत्व में दो बार केंद्र में सरकार बनी, तब भी विपक्ष का यही मानना था कि ईवीएम की गड़बड़ी के कारण ही भाजपा ने विजय प्राप्त की है। हालांकि इन दस वर्षों के दौरान कई बार ऐसे चुनाव परिणाम भी आए हैं,  जिसमें भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। लेकिन विसंगति यही है कि इसके बाद विपक्ष की ओर से ईवीएम पर कोई सवाल नहीं उठाए गए। ऐसी स्थिति में यही कहा जा सकता है कि विपक्ष की ओर से स्थिति देखकर ही सवाल उठाए जाते हैं।
विपक्षी राजनीतिक दलों को ऐसा ही लगता है कि भाजपा के पास कोई जनाधार नहीं है, वे मात्र ईवीएम के सहारे ही जीतते हैं। जबकि विपक्ष के किसी राजनीतिक दल को किसी राज्य में सत्ता प्राप्त हो जाए तो फिर ईवीएम पर सवाल नहीं उठाए जाते। हम जानते हैं कि विपक्ष को केवल भाजपा की जीत से परहेज है, वे भाजपा की जीत को पचा नहीं पाते, जबकि दिल्ली और पंजाब में आम आदमी पार्टी को छप्पर फाड़ समर्थन मिला था, लेकिन तब ईवीएम पर कोई सवाल नहीं उठा। हमें स्मरण होगा कि सन 2014 के लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद विपक्षी दलों के अधिकतर नेताओं ने एक स्वर में ईवीएम पर सवाल खड़े किए थे। तब इन सवालों का जवाब देने के लिए चुनाव आयोग ने सारे राजनीतिक दलों को बुलाया था कि ईवीएम को कोई हैक करके दिखाए। लेकिन उस समय ज्यादा विरोध करने वाले कोई भी राजनेता चुनाव आयोग के बुलावे पर नहीं पहुंचे। इसका तात्पर्य यही है कि विपक्ष के ईवीएम पर आरोप का कोई पुष्ट आधार नहीं है। इस बार भी केवल आशंका के आधार पर ईवीएम को निशाने पर लाने की कोशिश की जाने लगी है।
चुनाव परिणाम के बाद इस बात की पूरी संभावना बन रही थी कि इस बार ईवीएम को आड़े हाथ लिया जाएगा। इसलिए चुनाव आयोग ने भी ईवीएम को लेकर उत्पन्न होने वाले भ्रम को दूर करने का प्रयास किया। लेकिन इतना होने के बाद भी यह भ्रम दूर नहीं हो सका और ईवीएम पर आरोप लगने शुरू हो गए हैं। यह विवाद कितनी दूर तक जाएगा, यह तो कहना मुश्किल है, लेकिन ज़ब धुंआ उठने लगा है तो आग भी कहीं न कहीं लगी ही होगी। अब विपक्ष के निशाने पर चुनाव आयोग और ईवीएम दोनों ही हैं। विपक्ष की ओर से यह कई बार कहा गया कि चुनाव आयोग केंद्र सरकार के संकेत पर कार्य करता है। वास्तविकता यह है कि चुनाव आयोग एक स्वायत्त संस्था है, जिस पर न तो किसी सरकार का कोई प्रभाव रहता है और न ही किसी राजनीतिक दल का। फिर भी चुनाव आयोग को क्यों विवाद में घसीटा जाता है। यहां यह भी बताना बहुत महत्वपूर्ण है कि अगर विदेश का कोई व्यक्ति या संस्था भारत के बारे में कोई सवाल उठाता है तो हमारे देश के कुछ लोग उस पर आँख बंद करके विश्वास कर लेते हैं, जबकि हमारे देश के संस्थान केवल सफाई देते रहते हैं। अभी हाल ही में एलन मास्क द्वारा यह कहकर सनसनी फैलाने का ही काम किया है कि ईवीएम हैक हो सकती है। एलन मास्क ने यह बयान क्यों दिया, यह तो वही जानें, लेकिन विदेश के लोगों द्वारा भारत के बारे में ऐसे विवादित बयान कई बार दिए जा चुके हैं, जिसको आधार बनाकर भारत की राजनीति को प्रभावित करने का प्रयास किया गया। पाकिस्तान की तरफ से तो मोदी सरकार को सत्ता से हटाने के लिए एक अभियान सा चलता दिखाई दिया। बेहतर यही होता कि विदेश के किसी भी व्यक्ति को सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों तरफ से आईना दिखाने का कार्य किया जाता। क्योंकि यह भारत के अंदरुनी मामले हैं, जिनका समाधान कोई विदेशी कभी नहीं निकाल सकता।
ईवीएम पर सवाल उठाने से पहले यह सोचना होगा कि भारत एक बड़ा देश है। ईवीएम प्रणाली से समय की बचत तो होती ही है, साथ ही व्यय में भी कमी आती है। ईवीएम को लेकर जो सवाल अभी उठ रहे हैं, वे सवाल वास्तव में उस समय उठने चाहिए थे, ज़ब ईवीएम को भारत में लाया गया। उस समय की कांग्रेस की सरकार इसे लेकर आई। ऐसा लगता है कि उस समय यह ठीक थी, लेकिन बाद में उसी को बुराई के रूप में देखा जाने लगा। सत्यता यही है कि किसी भी विवाद में एक पक्ष को पराजित होना ही पड़ता है। यह पराजय भले ही न्याय पूर्ण हो, लेकिन जो हारता है उसे वह न्याय भी अन्याय जैसा ही लगता है। ईवीएम भी कुछ ऐसे ही वाकये का शिकार हो रही है। लोकसभा चुनाव के बाद देश में नई सरकार का गठन हो चुका है। परिणाम के बाद जो राजनीतिक स्थिति बनी है, उसके अनुसार भारतीय जनता पार्टी अन्य सभी दलों से बहुत आगे है। इसका तात्पर्य यही है कि भारत की जनता की पहली पसंद आज भी भाजपा ही है। इस सत्य को स्वीकार करना ही होगा। निराधार आरोप लगाने की राजनीति ने कभी देश का भला नहीं किया, इसलिए अब देश के बारे में सोचिए। यह समय की मांग है।
-सुरेश हिंदुस्तानी

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