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लोकसभा अध्यक्ष बनते ही ओम बिरला ने रचा इतिहास, सिर्फ दूसरी बार हो रहा ऐसा

नई दिल्ली । भाजपा के सांसद ओम बिरला को बुधवार को ध्वनिमत से लोकसभा अध्यक्ष चुन लिया गया। वह दूसरी बार लोकसभा अध्‍यक्ष बनें हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अध्यक्ष पद के लिए बिरला के नाम का प्रस्ताव रखा, जिसका रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अनुमोदन किया। इस प्रस्ताव को प्रोटेम स्पीकर (कार्यवाहक अध्यक्ष) भर्तृहरि महताब ने सदन में मतदान के लिए रखा और इसे सदन ने ध्वनिमत से मंजूरी दे दी। इसके बाद कार्यवाहक अध्यक्ष महताब ने बिरला को लोकसभा अध्यक्ष चुने जाने की घोषणा की।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू बिरला को अध्यक्षीय आसन तक लेकर गए। जब बिरला ने अध्यक्षीय आसन ग्रहण किया तो पीएम मोदी, राहुल गांधी और रिजिजू ने उन्हें बधाई और शुभकामना दी। पांचवीं बार ऐसा होगा कि कोई अध्यक्ष एक लोकसभा से अधिक कार्यकाल तक इस पद पर आसीन रहेगा। इसके अलावा कांग्रेस नेता बलराम जाखड़ एकमात्र ऐसे पीठासीन अधिकारी रहे हैं, जिन्होंने सातवीं और आठवीं लोकसभा में दो कार्यकाल पूरे किए हैं। आज तक किसी ने भी इस आसन पर दो कार्यकाल पूरे नहीं किए हैं।

गणेश वासुदेव मावलंकर लोकसभा के पहले अध्यक्ष थे। कांग्रेस के लोकसभा सांसद मावलंकर का कार्यकाल मई 1952 से फरवरी 1956 तक था। एम. अनन्तशयनम अय्यंगर देश के दूसरे लोकसभा अध्यक्ष बने। उन्होंने लोकसभा के प्रथम अध्यक्ष जी.वी. मावलंकर के आकस्मिक निधन के बाद अध्यक्ष पद का दायित्व ग्रहण किया था। कांग्रेस पार्टी के सांसद अय्यंगार के दो कार्यकाल रहे, जिसमें पहला मार्च 1956 से मई 1957 तक और दूसरा मई 1957 से अप्रैल 1962 तक रहा।
सरदार हुकम सिंह अप्रैल 1962 से मार्च 1967 के बीच लोकसभा के तीसरे स्पीकर थे। वर्ष 1962 के आम चुनावों में हुकम सिंह को कांग्रेस के टिकट पर पटियाला सीट से चुना गया था। डॉ. नीलम संजीव रेड्डी ने लोकसभा के चौथे अध्यक्ष के रूप में काम किया। रेड्डी के भी दो कार्यकाल रहे, जिसमें पहला मार्च 1967 से जुलाई 1669 तक और दूसरा मार्च 1977 से जुलाई 1977 तक रहा। रेड्डी चौथी लोकसभा के लिए आंध्र प्रदेश के हिन्दुपुर सीट से निर्वाचित हुए थे।

नीलम संजीव रेड्डी ऐसे एकमात्र अध्यक्ष हैं जिन्होंने अध्यक्ष पद का कार्यभार संभालने के बाद अपने दल से औपचारिक रूप से त्यागपत्र दे दिया था। अध्यक्ष पद पर चुने जाने के तुरन्त बाद उन्होंने कांग्रेस की अपनी 34 वर्ष पुरानी सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया। उनका यह मानना था कि अध्यक्ष का संबंध सम्पूर्ण सभा से होता है, वह सभी सदस्यों का प्रतिनिधित्व करता है और इसलिए उसे किसी दल से जुड़ा नहीं होना चाहिए या यों कहें कि उसका संबंध सभी दलों से होना चाहिए। वह ऐसे एकमात्र लोकसभा अध्यक्ष भी थे जिन्हें सर्वसम्मति से राष्ट्रपति चुने जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

नीलम संजीवा रेड्डी द्वारा राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने के लिए लोकसभा अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दिए जाने पर डॉ. गुरदयाल सिंह ढिल्लों को अगस्त 1969 में सर्वसम्मति से लोकसभा अध्यक्ष चुना गया। जब ढिल्लों इस पद के लिए निर्वाचित हुए तो वे उस समय तक लोकसभा के जितने अध्यक्ष हुए थे उनमें से सबसे कम उम्र के अध्यक्ष थे। कांग्रेस नेता ढिल्लों ने दो बार लोकसभा अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। पहला कार्यकाल अगस्त 1969 से मार्च 1971 तक और दूसरा मार्च 1971 से दिसंबर 1975 तक रहा।

ढिल्लों द्वारा अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दिए जाने के बाद रिक्त हुए पद पर जनवरी 1976 में बली राम भगत को पांचवीं लोकसभा के अध्यक्ष के रूप में निर्वाचित किया गया। कांग्रेस से आने वाले नेता का कार्यकाल मार्च 1977 को समाप्त हुआ था। छठी लोकसभा के अध्यक्ष के रूप में कावदूर सदानन्द हेगड़े का चुनाव किया गया। केएस हेगड़े का कार्यकाल जुलाई 1977 से जनवरी 1980 तक रहा। यह भी दिलचस्प था कि हेगड़े 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर पहली बार निर्वाचित हुए और अपने प्रथम कार्यकाल के दौरान ही उन्हें लोकसभा अध्यक्ष का पद मिल गया।

डॉ. बलराम जाखड़ ने सातवीं लोकसभा के लिए अपने सर्वप्रथम निर्वाचन के तुरंत बाद अध्यक्ष पद हासिल किया। उन्हें लगातार दो बार लोकसभा अध्यक्ष चुना गया। कांग्रेस से आने वाले जाखड़ का पहला कार्यकाल जनवरी 1980 से जनवरी 1985 तक और जनवरी 1985 से दिसंबर 1989 तक रहा। ओडिशा से आने वाले जनता दल के नेता रवि राय को दिसम्बर 1989 में नौवीं लोकसभा का अध्यक्ष चुना गया। हालांकि, रवि राय अध्यक्ष पद पर केवल करीब 15 महीने ही रहे। कांग्रेस नेता शिवराज विश्वनाथ पाटील 10वीं लोक सभा के अध्यक्ष निर्वाचित हुए थे। पाटील का कार्यकाल जुलाई 1991 से मई 1996 तक रहा।

वर्षों की भारतीय संसदीय परंपरा से हटकर 11वीं लोकसभा ने विपक्ष के एक सदस्य पूर्णो अगितोक संगमा को सर्वसम्मति से अध्यक्ष पद के लिए निर्वाचित किया। उस वक्त भारत के 50 वर्षों के संसदीय इतिहास में वह ऐसे पहले सदस्य थे जिन्होंने विपक्ष में रहते हुए अध्यक्ष का पद संभाला। उस वक्त कांग्रेस नेता संगमा का स्पीकर के रूप में पी.ए. संगमा का कार्यकाल मार्च 1996 से मार्च 1998 तक था।

गन्ती मोहन चन्द्र बालायोगी को 12वीं लोक सभा का अध्यक्ष निर्वाचित होने और सर्वसम्मति से 13वीं लोक सभा का अध्यक्ष पुनः निर्वाचित होने का गौरव हासिल है। तेलुगूदेशम पार्टी सांसद बालायोगी ने मार्च 1998 में देश के राजनैतिक इतिहास के अत्यंत नाजुक दौर में लोकसभा अध्यक्ष के महत्वपूर्ण पद के लिए निर्वाचित हुए। टीडीपी उस समय गठबंधन सरकार का बाहर से समर्थन कर रही थी। उस समय किसी भी पार्टी के पास स्पष्ट बहुमत नहीं था। बालायोगी इस पद पर आसीन होने वाले आज तक के सबसे कम आयु के व्यक्ति थे। एक हेलीकाप्टर दुर्घटना में तत्कालीन लोक सभा अध्यक्ष जीएमसी बालायोगी की दुखद मृत्यु के बाद मनोहर जोशी मई 2002 में लोकसभा अध्यक्ष बने थे। शिवसेना से ताल्लुक रखने वाले जोशी जून 2004 तक पद पर बने रहे।

जून 2004 में 14वीं लोकसभा के अध्यक्ष के रूप में सोमनाथ चटर्जी का सर्वसम्मति से निर्वाचन हुआ। यह पहली बार था जब सामयिक अध्यक्ष (प्रोटेम स्पीकर) का लोकसभा अध्यक्ष के रूप में निर्वाचन किया गया था। सोमनाथ चटर्जी माकपा से जुड़े थे। उप-प्रधानमंत्री स्वर्गीय बाबू जगजीवन राम की पुत्री मीरा कुमार 2009 से 2014 तक लोकसभा की 15वीं अध्यक्ष रहीं। इस पद पर आसीन होने वाली वे पहली महिला थीं। मीरा कुमार कांग्रेस की सदस्य हैं। भाजपा की सुमित्रा महाजन 16वीं लोकसभा की अध्यक्ष थीं। वे इस पद पर आसीन होने वाली भारत की दूसरी महिला हैं। राजस्थान के कोटा से भाजपा के सांसद ओम बिड़ला 17वीं लोकसभा के अध्यक्ष निर्वाचित हुए थे।

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