Wednesday, September 18, 2024
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शादी से पहले यह जांच जरुरी , आश्रम स्कूलों के बच्चों की हो रही हैं जांच

संजय सिंह ठाकुर / पालघर : आज के डिजिटल युग में मनुष्य तरह तरह की बीमारियों से जूझ रहा है । इसमें कुछ बीमारी अनुवांशिक , कुछ बीमारीयां  मनुष्य के रहन सहन और बाहरी वातावरण में हानिकारक कारकों के संपर्क में आने से होती है। बीमारीयों के प्राथमिक रोकथाम के लिए  किये जाने वाले तमाम उपाय के बावजूद भी बीमारीयां  बढती ही जा रही है । वही पालघर में अनुवांशिक रोग सिकल सेल एनीमिया के रोकथाम के लिए  एक मोहिम चलाया जा रहा है ताकि इस बीमारी पर शिकंजा कसा जा सके । कहने को पालघर यह एक आदिवासी बहुल जिला है । और यहां कई लोगों में कुपोषण, और सिकल सेल एनीमिया जैसी बीमारिया बड़े पैमाने पर देखने मिलती हैं । जिले में बड़ी संख्या में आदिवासी आबादी है । खासकर जिले के आदिवासी आबादी वाले ग्रामीण इलाकों में, दूरदराज के इलाकों में रहने वाले नागरिकों में कुपोषण, सिकल सेल एनीमिया जैसी बीमारियाँ अधिक पायी जाती हैं । वर्तमान में जिले में सिकल सेल बीमारी प्रमाण बढ़ता हुआ नजर आ रहा है । केवल ग्रामीण क्षेत्र ही नहीं बल्कि अब जिले के शहरी क्षेत्र में भी कई लोग सिकल सेल बीमारी से पीड़ित हैं । इसलिए समय रहते सिकल सेल रोग की रोकथाम करने और इसके खिलाफ उपाय करने के लिए जिले के स्वास्थ्य केंद्रों, आश्रम विद्यालयों आदि में सिकल सेल परीक्षण शिविर आयोजित किए जा रहे हैं ।

पालघर जिले के डहाणू में स्थित कॉटेज अस्पताल में सिकल सेल बीमारी का प्रमाण कम करने के विशेष प्रयास किए जा रहे हैं । कॉटेज हॉस्पिटल के स्टाफ, आर.बी.एस.के, इंडियन अकॅडमी ऑफ पेडियाट्रिक्स और कॉप्रेहेन्सीव्ह थेलेसिमिया केअर सेंटर बोरीवली आदि मिलकर हर महीने के तीसरे शनिवार को डहाणू के उपजिला अस्पताल में माताओं, नवजात शिशुओं, आश्रम स्कूल के बच्चों की सिकल सेल बीमारी की जांच करते हैं. और उन्हें जरूरी दवाइयां दी जाती हैं । इस बीच उनकी काउंसलिंग भी की जाती हैं ।

बालरोगतज्ञ  डॉ. अंजली गोकण जानकारी देते हुए बताया की, देश का कोयले का बेल्ट माने जाने वाले गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा तक का जो यह बेल्ट हैं उसे पहाड़ी बेल्ट के नाम से भी जाना जाता हैं । सिकल सेल बीमारी मुख्य रूप से इन क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी नागरिकों में पायी जाती है । इस क्षेत्र के 40 प्रतिशत लोग सिकल सेल बीमारी के वाहक हैं । इसमें यदि पति-पत्नी दोनों इस बीमारी के वाहक हैं तो यह अनुवांशिक बीमारी उनसे अगली पीढ़ी में जाती है । दहानू उपजिला अस्पताल में पिछले 2 वर्षों से सिकल सेल परीक्षण शिविर का आयोजन किया जा रहा है । इस बीच यहां 100 बच्चे रजिस्टर हुए है, जिन्हे यह बीमारी है. इसलिए डॉक्टर नागरिकों को सलाह दे रहे हैं की, जैसे हम शादी से पहले कुंडली देखते हैं, वैसे ही शादी से पहले सिकल सेल टेस्ट कराये ।

आईसीएमआर की दहानू टीम ने पिछले तीन से चार वर्षों में डहाणू क्षेत्र में लगभग 7 हजार से ज्यादा नवजात शिशुओं के ब्लड सैपल लेकर सिकल सेल बीमारी का टेस्ट किया । जिसमे यह बात सामने आई है कि, लगभग 40 बच्चे जन्म से ही सिकल सेल बीमारी से पीड़ित हैं । इसका मतलब यह है कि, इन बच्चों के माता-पिता सिकल सेल बीमारी के वाहक होंगे ।  इसलिए डॉक्टर समय-समय पर सलाह दे रहें हैं की, अपनी अगली पीढ़ी को इस आनुवांशिक बीमारी से बचाने के लिए सभी नागरिकों को शादी से पहले यह जांच करानी चाहिए, ताकि उन्हें पता चल सके कि वे इस बीमारी के वाहक हैं या नहीं ।

डॉ. सागर पाटिल
डॉ. सागर पाटिल
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