नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव के एग्जिट पोल जारी हो गए हैं, तीसरी बार भी मोदी सरकार बनने जा रही है। एनडीए की सिर्फ केंद्र में वापसी होती नहीं दिख रही है, बल्कि प्रचंड वापसी होने जा रही है। आजाद भारत में ऐसा दूसरी बार हो सकता है जब लगातार तीसरी बार कोई पार्टी सत्ता में लौट आए। प्रधानमंत्री मोदी के साथ सबसे खास बात यह भी जुड़ सकती है कि 10 साल बाद वे और ज्यादा बड़े जनादेश के साथ वापसी कर सकते हैं। इस बार के एग्जिट पोल के जो आंकड़े सामने आए हैं वे कई संदेश दे रहे हैं।
10 साल बाद भी मोदी पर इतना विश्वास
नरेंद्र मोदी 2014 के चुनाव के वक्त वे केंद्र की राजनीति में एक खिलाड़ी थे। प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्हें 2019 के चुनाव में खुद को फिर साबित करने की बड़ी चुनौती थी, इस बात की भी परीक्षा थी कि पांच सालों में उन्होंने ठीक काम किया या नहीं। लेकिन अब वे किसी भी पार्टी से ज्यादा बड़े बन चुके हैं। इस बार अगर फिर पीएम मोदी की ऐसी जबरदस्त वापसी हो रही है तो साफ हो जाता है कि यह ब्रॉन्ड समय के साथ और ज्यादा मजबूत हो चुका है। इस ब्रॉन्ड ने अपने दम पर अपने ही दिए गए महत्वकांक्षी टारगेट को हकीकत में बदलने की कोशिश की है। पीएम मोदी की वजह से 400 पार का नारा कोई शिगूफा दिखाई नहीं पड़ रहा है, एनडीए का आंकड़ा वहां तक जा सकता है। एग्जिट पोल के आंकड़ों के अनुसार इस बार कुछ बड़ा नजर आ रहा है तो इस चुनाव में मोदी की गारंटी, जो सबसे ज्यादा चर्चा में रही थी। विरोधियों ने इसे पीएम मोदी का घमंड मान लिया और वे उसी वजह से इस तरह से लगातर अपने ही नाम का ढिंढोरा पीट रहे हैं। लेकिन एग्जिट पोल के आंकड़े संदेश दे रहे हैं कि मोदी की गारंटी पर ही सबसे ज्यादा भरोसा किया गया है। इसके ऊपर सांसदों के प्रति जो नाराजगी थी, उसका काउंटर भी मोदी की लोकप्रियता बन गई है।
बस नाम के लिए रहा इंडी गठबंधन
पीएम मोदी को हराने के लिए इस बार पूरा विपक्ष एकजुट हुआ था। उसी एकजुटता को इंडी गठबंधन बताया गया। हर बड़ा चेहरा एक साथ आया, फिर चाहे राहुल गांधी हों, अखिलेश यादव हों, ममता बनर्जी हों, अरविंद केजरीवाल हों या फिर शरद पवार। सभी पार्टियों ने मिलकर इस बार चुनाव लड़ा, लेकिन फिर भी आपसी तालमेल काफी लचर और कमजोर दिखा। अब उस कमजोरी का असर एग्जिट पोल के आंकड़ों में देखने को मिल रहा है। इंडी गठबंधन एक ऐसा गठबंधन बनकर सामने आया जहां कोई दल असल में किसी से बंधने को तैयार ही नहीं दिखा। इसका सबसे बड़ा उदाहरण पश्चिम बंगाल देखने को मिला। ममता बनर्जी ने एकला चलो नीति पर आगे बढ़ते हुए इंडी गठबंधन को बड़ा झटका दे दिया।
इसी तरह दिल्ली में आप-कांग्रेस की सिायसी दोस्ती पंजाब में जाकर दुश्मनी में बदल गई। केरल में कांग्रेस-लेफ्ट की दुश्मनी ने बंगाल में दोस्ती का रूप लिया। यह कुछ ऐसे मतभेद थे जो शायद जनता भी हजम नहीं कर पाई। कहने को सब साथ थे, लेकिन फिर भी कोई साथ नहीं दिखाई पड़ा। कई मुद्दों पर भी इंडी गठबंधन की राय एकमत नहीं थी। हर किसी ने अपना अलग घोषणा पत्र तक जारी किया था, सपने कॉमन मिनिमम प्रोग्राम के दिखाए गए, लेकिन आखिर में सभी ने अपने अलग वादे कर डाले। एग्जिट पोल के नतीजे बता रहे हैं कि जनता को यह सारी बातें रास नहीं आई हैं।
केजरीवाल या उद्धव सहानुभूति किसको
इस चुनाव में एक बड़ा फैक्टर अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी भी रहा। चुनावी मौसम में आप संयोजक का जेल जाना सबसे बड़ा नाटकीय मोड़ था। उसके बाद जिस तरह से उनकी पत्नी सुनीता केजरीवाल ने कमान संभाली, सभी को लगने लगा कि सहानुभूति की लहर में बीजेपी बह जाएगी। दिल्ली में कोई बड़ा उलटफेर देखने को मिल जाएगा। लेकिन एग्जिट पोल के आंकड़े बता रहे हैं कि बीजेपी फिर अपना पुराना प्रदर्शन दोहरा सकती है। उसके खाते में फिर सात सीटें जा सकती हैं, कुछ पोल बता रहे हैं कि पार्टी को मात्र एक से दो सीटों का नुकसान होने वाला है। यह साफ बताता है कि केजरीवाल के प्रति दिल्ली की जनता में कोई सहानुभूति नहीं दिखी, इससे उलट स्वाति मालीवाल के साथ हुई कथित मारपीट ने उसे नुकसान पहुंचाने का काम किया। दूसरी तरफ महाराष्ट्र का एग्जिट पोल आंकड़ा बताता है कि उद्धव ठाकरे को जनता की कुछ सहानुभूति जरूर मिली है। जिस तरह से शिवसेना में दो फाड़ हुई, जिस तरह से उद्धव को अपनी सीएम कुर्सी छोड़नी पड़ी, अब एग्जिट पोल बता रहे हैं कि जनता का रुझान काफी हद तक अभी भी उद्धव के पक्ष में है। इसी तरह इंडी गठबंधन को भी यहां पर कुछ फायदा होता दिख रहा है।
संदेशखाली विवाद का असर
पश्चिम बंगाल में इस बार संदेशखाली विवाद ने जमीन पर तमाम समीकरण बदल दिए थे। चुनावी मौसम में ही महिलाओं के साथ हुए सबसे बड़े अत्याचार के गंभीर आरोप लगे थे, आरोपी भी टीएमसी का ही एक नेता निकला। बीजेपी ने इस मुद्दे को जबरदस्त तरीके से उठाया था। संदेशखाली की पीड़ित रेखा पात्रा को टिकट देकर भी बड़ा दांव चलने का काम किया। अब एग्जिट पोल के आंकड़े बता रहे हैं कि इस मुद्दे का टीएमसी को काफी नुकसान हुआ है। एक्सिस तो कह रहा है कि एनडीए का आंकड़ा 31 सीटों तक जा सकता है। यह बताने के लिए काफी है कि इस बार एनडीए अपना पुराना रिकॉर्ड और ज्यादा बेहतर करने वाली है। इससे ऊपर बंगाल में बीजेपी को सीएए, तुष्टीकरण वाले नेरिटिव और भ्रष्टाचार के टीएमसी पर लगे आरोप ने भी फायदा दिया है। अगर एग्जिट पोल सही निकले तो यह सारे मुद्दे टीएमसी पर काफी भारी पड़े हैं।
साउथ में बीजेपी की एंट्री
दक्षिण भारत में इस बार एनडीए अपना प्रदर्शन बेहतर कर सकती है। किसी ने नहीं सोचा था कि तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों में बीजेपी अपना खाता खोलेगी, लेकिन 24 के रण में ये बड़ा बदलाव भी होता दिख रहा है। तमाम एग्जिट पोल केरल में एनडीए को 3 से 4 सीटें दे रहे हैं, तमिलनाडु में भी 2 से 4 सीटें मिलने का अनुमान है। तेलंगाना में 17 में से 11 सीटें तक बीजेपी को जीतता हुआ दिखाया जा रहा है। आंध्र प्रदेश में तो टीडीपी का गठबंधन उसे सभी 25 सीटों पर मजबूत बना रहा है। कर्नाटक में भी बीजेपी अपना पिछला प्रदर्शन फिर दोहरा रही है। इस तरह दक्षिण भारत में एनडीए 75 सीटों तक जीतता दिख रहा है। यह साफ बता रहा है कि अगर कुछ राज्यों में बीजेपी को नुकसान होता भी है तो यहां से उसकी भरपाई होने वाली है।
दक्षिण में सीटों के आने का मतलब यह भी है कि धीरे-धीरे ही सही, प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता अब अपना असर दिखाने लगी है। जिस तरह से इस बार पीएम मोदी ने साउथ में लगातार रैलियां की थीं, लगातार दौरा किया था, उसका असर भी देखने को मिल रहा है। अगर साउथ में सही में बीजेपी इतना मजबूत हो जाती है, उस स्थिति में उसका आने वाले सालों में और ज्यादा ताकतवर बनने का रास्ता साफ हो जाएगा।
नुकसान की नए राज्यों से भरपाई
बीजेपी को लेकर पहले से कहा जा रहा था कि उसे अगर और बड़ी जीत दर्ज करनी है तो कई दूसरे राज्यों में बेहतर करना होगा। उस लॉजिक के पीछे तर्क यह था कि बीजेपी ने उत्तर भारत में पहले ही अपना बेस्ट प्रदर्शन दे दिया था, कई राज्यों में वो सारी सीटें जीत रही थी, इसी वजह से उन राज्यों से सीटें निकालनी थीं जहां पहले वो कमजोर है। अब एग्जिट पोल बताता है कि बीजेपी ने ऐसा कर दिखाया है। इस बार बीजेपी को कई उन राज्यों में अच्छी सीटें मिलती दिख रही हैं जहां पहले उसे उतनी नहीं मिलती थीं। उदाहरण के लिए ओडिशा में बीजेपी कुछ मजबूत तो 2019 में ही हो गई थी, लेकिन इस बार उसकी ताकत और ज्यादा बढ़ चुकी है। एग्जिट पोल्स के मुताबिक बीजेपी आराम से 15 से ज्यादा सीटें जीतती दिख रही है, नवीन पटनायक की बीजेडी का एक तरह से सूपड़ा साफ हो सकता है। यह बताने के लिए काफी है कि ओडिशा में एग्जिट पोल के मुताबिक तो जरूर परिवर्तन की साफ लहर देखने को मिल रही है। इसी तरह पश्चिम बंगाल में भी बीजेपी 18 सीटों से भी बेहतर प्रदर्शन करती दिख रही है। तरह दक्षिण भारत से भी बीजेपी कई सीटें कमा रही है। इसका सबसे बड़ा फायदा यह हो रहा है कि जो सीटें बीजेपी महाराष्ट्र में हार सकती है, उसकी भरपाई यहां से हो सकती है।
राहुल का संविधान बचाने का शिगूफा फेल
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इस चुनाव में संविधान को एक बड़ा मुद्दा बनाया था। उन्होंने अपनी हर सभा में कहा कि बीजेपी और पीएम मोदी संविधान को खत्म करना चाहती है। यहां तक नेरेटिव सेट कर दिया कि मोदी 400 सीटें ही संविधान बदलने के लिए मांग रहे हैं। शुरुआती चरणों के बाद ऐसा महसूस हो रहा था कि जमीन पर इंडी गठबंधन और राहुल की मेहनत रंग ला रही है। लेकिन एग्जिट पोल के आंकड़े साफ बताते हैं कि यह रणनीति भी फेल हो चुकी है। जनता ने इस नेरेटिव में कोई विश्वास नहीं दिखाया है। अगर विश्वास दिखाया होता तो हर एग्जिट पोल एक ही तरह के आंकड़े जारी नहीं करता। इसी तरह राहुल गांधी ने ही जातिगत जनगणना के मुद्दे को सबसे जोर शोर से उठाया था। उनका कहना था कि आरक्षण का सही लाभ तभी मिल सकता है जब जातिगत जनगणना करवाई जाए। अब संविधान बचाने की तरह यह दांव भी फुस होता दिख रहा है। जनता को मोदी के वादों और उनके काम पर ज्यादा भरोसा दिखाई दे रहा है।
प्रो इनकमबेंसी का नया फॉर्मूला
इस देश में हर बार एंटी इनकमबेंसी की चर्चा होती है। एक सरकार को पांच साल होते नहीं कि हर कोई बोलना शुरू कर देता है कि सत्ता विरोधी लहर का असर जमीन पर दिखने लगा है। जनता के मन में सरकार के प्रति नाराजगी आ चुकी है। लेकिन पीएम मोदी और ये बीजेपी सरकार ने साबित कर दिया है कि उसके खिलाफ कोई नाराजगी नहीं है। जिस तरह से एग्जिट पोल में ही पिछली बार से बेहतर नतीजे मिलते दिख रहे हैं, ये बताने के लिए काफी है कि सत्ता विरोधी नहीं सत्ता पक्षी लहर चल रही है। इसे प्रो इनकमबेंसी का वोट भी कहा जा सकता है। ऐसा पहले देखने को नहीं मिला है कि लगातार तीसरी बार अगर फिर ज्यादा सीटों के साथ सरकार बन जाए।