नई दिल्ली । आज सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला देते हुए इलेक्टोरल बॉन्ड पर बैन लगा दिया. सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले के बाद कोर्ट के भीतर प्रशांत भूषण और सॉलिसिटर जनरल के बीच हुई बातचीत में सभी वकील ठहाका लगाने को मजबूर हो गए।
इलेक्टोरेल बॉन्ड की कानूनी वैधता पर सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए इसे असंवैधानिक करार दे दिया. अब 2019 के बाद किसने किस राजनीतिक दल को क्या पैसा दिया, एसबीआई को इसकी जानकारी देनी होगी. भारत सरकार साल 2017 में ये कानून लेकर आई थी. कोर्ट ने माना कि चुनावी बांड स्कीम सूचना के अधिकार और अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन है. इसी बीच कोर्ट के भीतर प्रशांत भूषण और सॉलिसिटर जनरल के बीच हुई बातचीत में सभी वकील ठहाका लगाने को मजबूर हो गए।
कोर्ट में क्यों लगे ठहाके?
हुआ यूं कि फैसला आने के बाद वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कोर्ट में कहा कि यह एक सराहनीय फैसला है, जो हमारी लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बढ़ावा देगा. यह सुनते ही कोर्ट रूम में ही मौजूद सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने चुटकी भरे अंदाज में कहा यह बयान तो बाहर के लिए है. जाइए बाहर फोटोग्राफर्स आपका इंतजार कर रहे हैं. इसके बाद कोर्ट रूम में हंसी के ठहाके लगने लगे. बता दें, सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि राजनीतिक दलों की फंडिंग के बारे में लोगों को जानने का अधिकार है. इस तरह सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार के साल 2017 के फैसले को पलट दिया है।
क्या है इलेक्टोरल बांड?
यह एक वचन पत्र की तरह है जिसे भारत का कोई भी नागरिक या कंपनी भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं से खरीद सकता है और अपनी पसंद के किसी भी राजनीतिक दल को गुमनाम तरीके से दान कर सकता है. आसान भाषा में इसे अगर हम समझें तो इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक दलों को चंदा देने का एक वित्तीय जरिया है. आज कोर्ट ने इसे असंवैधानिक माना और चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया।