Saturday, November 23, 2024
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मुरादाबाद में मुस्लिम वोट पर सियासी घमासान, बसपा ने उतारा प्रत्याशी, सपा का ऐलान बाकी

With 38 seats, Mayawati's BSP is senior partner in UP pact with Akhilesh  Yadav - Hindustan Times

मुरादाबाद । मुस्लिम मतों को लेकर मुरादाबाद (Moradabad)में सियासी दलों में घमासान मचा है। बसपा मुस्लिम मतों (Muslim votes)को अपने पाले में लाने के लिए जोर आजमाइश में जुटी है तो वहीं सपा-कांग्रेस गठबंधन(SP-Congress alliance) अपने पाले में लाने का प्रयास (Attempt)कर रही है। सपा मुस्लिम मतों को अपना परंपरागत वोट मान कर चल रही है। कोई और सेंधमारी न कर पाए इस पर फोकस कर रही है और माना जा रहा है कि सपा भी मुरादाबाद से किसी मुस्लिम प्रत्याशी को ही चुनाव मैदान में उतारेगी।

अभी सपा-कांग्रेस गठबंधन का प्रत्याशी तय नहीं

मुरादाबाद मंडल में बसपा ने अमरोहा और मुरादाबाद से मुस्लिम प्रत्याशी पर दांव लगाया है। वहीं मंडल की किसी भी सीट पर सपा-कांग्रेस गठबंधन का प्रत्याशी तय नहीं है। संभल से शफीकुर्रहमान बर्क के नाम का ऐलान पहली लिस्ट में हुआ था, लेकिन उनके निधन के बाद अब वहां नए सिरे से प्रत्याशी का ऐलान होगा। माना जा रहा है कांग्रेस-सपा गठबंधन से भी मुरादाबाद, संभल, अमरोहा और रामपुर में मुस्लिम चेहरा ही चुनाव मैदान में होगा। बसपा का गणित कुछ इस तरह का है कि उनके परंपरागत मतदाता प्रत्येक सीट पर अच्छे खासे हैं। इसमें अगर मुस्लिम मतों का साथ मिल जाए तो राह आसान हो जाए।

वहीं सपा मुस्लिम मतों पर अपना अधिकार मानती है और पिछले चुनावों के आंकड़े भी इसकी तस्दीक करते हैं। अब चुनौती यह है कि मुस्लिम मतों को अपने पाले में पूरी तरह से लाने में कामयाब कौन रहता है। कुल मिला कर आईएनडीआईए गठबंधन हो या बसपा सबसे ज्यादा फोकस मुस्लिम मतों को सहेजने का है। मुस्लिम मतों की संख्या मंडल की प्रत्येक सीट पर निर्णायक है। इसी वजह से इन दलों का फोकस मुस्लिम मतों पर ही है। मुस्लिम मतदाताओं का रुख क्या होगा यह चुनाव में सभी प्रत्याशियों के ऐलान के बाद स्पष्ट हो जाएगा।

पिछली बार सपा-बसपा मिल कर लड़े इस बार अलग

पिछले लोकसभा चुनाव में प्रदेश में सपा-बसपा मिल कर लड़े थे। इस पर मंडल की छह सीटों में से तीन-तीन सीटें दोनों के खाते में गई थीं। इस बार सपा और कांग्रेस साथ है और बसपा अलग है। रालोद इस बार भाजपा के साथ है। ऐसे में अलग तरह के समीकरण और चुनौतियां हैं। इन चुनौतियों से पार पाने के साथ ही प्रमुख सियासी दल मुस्लिम मतदाताओं की ओर देख रहे हैं।

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