नई दिल्ली । झारखंड में हेमंत सोरेन के जेल जाने के दो दिन बाद ही सही चंपई सोरेन को राज्य के मुख्यमंत्री का पद मिल गया है। ये दोनों ही नेता झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के हैं, जो अभी भी दिशोम गुरु या गुरुजी या शिबू सोरेन के नाम पर एकजुट है।
67 वर्षीय चंपई सोरेन किन परिस्थितियों में मुख्यमंत्री बने हैं, यह बात पब्लिक डोमेन में है। जब जमीन और खनन घोटाले में गिरफ्तारी से पहले पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अपनी कुर्सी के उत्तराधिकारी को लेकर पार्टी नेताओं से बातचीत कर रहे थे, तो उसमें उनकी पत्नी कल्पना सोरेन की मौजूदगी से काफी कुछ संकेत मिल रहा था।
गुरुजी के परिवार में एक से ज्यादा दावेदारों का मिला फायदा
मतलब, ये स्पष्ट है कि चंपई सोरेन दिशोम गुरु के परिवार की पहले पसंद नहीं हैं। 80 वर्षीय शिबू सोरेन के घर में खुद उनकी बड़ी बहू और पार्टी के दिवंगत नेता दुर्गा सोरेन की पत्नी सीता सोरेन भी इसकी दावेदार के तौर पर उभरी थीं। कहीं न कहीं उनके छोटे बेटे बसंत सोरेन का नाम भी इस पद के लिए उछल रहा था। तब जाकर शिबू सोरेन ने अपने सबसे पुराने सहयोगियों में शामिल चंपई सोरेन को आशीर्वाद देने का फैसला किया। वन इंडिया ने जेएमएम की अंदरूनी राजनीति को लेकर झारखंड मामलों की जानकारी रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार रंजन कुमार से बात की है।
‘शिबू के स्वाभाविक पसंद नहीं हैं चंपई सोरेन’
उनके मुताबिक ‘शिबू सोरेन के जितने भी पुराने सहयोगी थे, उनमें अब चंपई ही उनके साथ रह गए हैं। पार्टी के कई वरिष्ठ नेता और झारखंड आंदोलन में उनके साथ संघर्ष करने वाले अब उनका साथ छोड़ चुके हैं। ‘यानी चंपई जेएमएम की स्वाभाविक पंसद न होकर परिस्थितियों की वजह से मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे हैं।’ हमने सवाल किया कि क्या हेमंत सोरेन की जेल से रिहाई के बाद चंपई आसानी से उनके लिए कुर्सी छोड़ने को तैयार हो सकते हैं।
क्या हेमंत के लिए कुर्सी छोड़ने को राजी होंगे चंपई?
इसपर रंजन कुमार ने कहा कि ‘आप शपथग्रहण के दौरान की नए मुख्यमंत्री की तस्वीरें देखिए। वे इसलिए इस पर बैठे हैं, क्योंकि उनके नेता जेल गए हैं। लेकिन, उनकी बॉडी लैंग्वेज में ऐसा कुछ भी नहीं दिख रहा है। वह ताजपोशी के लिए परिवार के साथ राजभवन पहुंचे थे। उनके चेहरे की मुस्कुराहट भी देखने लायक है। जमशेदपुर के पास सरायकेला में जब न्यूज एजेंसी एएनआई ने सीएम चंपई सोरेन के छोटे भाई दिकुराम सोरेन से उनके मुख्यमंत्री बनने पर बात की तो उन्होंने भी यही कहा, ‘बहुत ही खुशी की बात है….वह मुख्मंत्री बन गए हैं।
आज भी शिबू सोरेन के नाम पर खड़ा है जेएमएम
अब जेएमएम से जुड़े कुछ और तथ्यों की पड़ताल कर लेते हैं। हकीकत ये है कि अलग झारखंड राज्य के लिए हुए आंदोलन से बनी यह पार्टी आज भी तीन बार के मुख्यमंत्री शिबू सोरेन के नाम पर चलती है। वह सिर्फ उम्र की वजह से सक्रिय राजनीति से दूर हैं, लेकिन पार्टी में नेताओं और कैडर के लिए वह आज भी बाइंडिंग फोर्स का काम कर रहे हैं।
पिता के स्वाभाविक राजनीतिक उत्तराधिकारी नहीं हैं
जहां तक हेमंत सोरेन की बात है तो वह अपने पिता के स्वाभाविक राजनीतिक उत्तराधिकारी नहीं थे। यह अधिकार उनके दिवंगत बड़े भाई और सीता सोरेन के पति दुर्गा सोरेन को प्राप्त था।
शिबू की तरह संघर्ष के दम पर यहां तक पहुंचे हैं चंपई सोरेन
उनके असामयिक निधन की वजह से हेमंत परिस्थितियों की वजह से राजनीति में आए हैं। वह उस संघर्ष की पैदाइश नहीं हैं, जिससे शिबू सोरेन और चंपई सोरेन गुजर कर यहां तक पहुंचे हैं या जिसका दिवंगत दुर्गा सोरेन ने भी सामना किया था।
पड़ोसी राज्य बिहार में जब 2013 में नीतीश कुमार एनडीए से बिदक कर पहली बार दूर हुए थे तो उन्होंने जीतन राम मांझी को सीएम की कुर्सी पर बिठा दिया था। तब मांझी का प्रदेश की राजनीति में कोई खास वजूद नहीं था। जब मांझी मुख्यमंत्री के तौर पर चीजों को समझने लगे तो नीतीश के कान खड़े हो गए और उन्होंने बिना देर किए अपनी कुर्सी वापस झटक ली। अपना यह दर्द खुद मांझी भी जाहिर कर चुके हैं।