संजय सिंह / पालघर : पाकिस्तान की जेल से साढ़े तीन साल बाद छूटकर आये मछुवारों ने नम आंखो से अपना दर्द बयां किया|मछुवारों ने कहा की पाकिस्तान की जेल में जाने के बाद उनका पूरा जीवन ही बदल गया है|इन सालों में हमारे बच्चों की पढ़ाई छुट गई ,उनका भविष्य अंधेरे में चला गया है ,परिवार दर दर ठोकर खाने कों मजबूर है|हमें मद्दत करने वाला कोई नही हैजबकि गुजरात सरकार जेल में बंद के दौर मछुवारों के परिवार कों प्रति दिन तीन सौ रूपये घर खर्च के लिए देती है,लेकिन महाराष्ट्र सरकार ने हमें लावारिस छोड़ दिया है|
दो बैच में चार सौ मछुवारों कों पाकिस्तान ने किया रिहा
पाकिस्तान ने दो अलग अलग बैच में करीब चार सौ भारतीय मछुवारों कों पाकिस्तान की जेल से रिहा किया है, जिसमें पालघर जिले के 11 मछुवारे शामिल है|तीसरे बैच में यानी 3 जुलाई कों 100 मछुवारों कों और रिहा करने वाल है पाकिस्तान की जेल में टोटल 666 भारतीय मछुवारे बंद है |
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पेट भर नही मिलता था खाना
मछुवारों ने ’’केशव भूमि ’’ कों बताया की जेल में उन्हें आधा पेट से कम खाना मिलता था|सुबह नाश्ते में चाय और एक तंदूरी रोटी ,दोपहर और रात में दो – दो रोटी और सब्जी मिलती थी |यानी दिन में केवल 5 रोटी मिलती थी | जिससे इनका पेट नही भरता था|पहनने के लिए पाकिस्तान कैदियों के पहने हुए कपडे इन्हें मिलता था| जेल में वह लावारिस अवस्था में थे, उनकी सुधि लेने वाल कोई नहीं था|केवल मरने वाले कैदियों कों सम्मान मिलता थामरने के बाद अपने देश के अधिकारी आकर उनका सम्मानपूर्ण अंतिम संस्कार करते थे |
वही ’’केशव भूमि ’’ के सवालों का जबाब देते हुए विलास कोंडारी ने बताया कि जेल जाने से 15 दिन पहले वह गुजरात के मांगलोर से मछली पकड़ने के लिए गए थे.समुंदर में 15 दिन बाद पहले पाकिस्तान के कोसगाई आये पूछताछ कर चले गये। उसके बाद हमे रात में टारगेट किया गया और पाकिस्तान के जवान आये और हमे पकड़ कर पाकिस्तान की जेल में डाल दिया । वोट मालिक के प्रेशर में हमें बॉर्डर पर मछली पकड़ना पड़ता है क्योंकि वहा ज्यादा मछलियां मिलती है, जिससे वोट मालिकों को बहुत फायदा होता है। लेकिन पकड़े जाने के बाद वह हमारी कोई मद्दत नही करते है,हमे लावारिस छोड़ देते है।
डिलेवरी के लिए नही थे पैसे
एक महिला ने बताया की जब वह गर्भवती थी तभी उसके पति पाकिस्तान की जेल में चले गए जिसके बाद उसके घर की आर्थिक स्तिथ पूरी तरह बिगड़ गई | डिलेवरी तक लिए उसके पास पैसे नहीं थे|अपने माँ – बाप के सहारे किसी तरह घर सम्भाला|अब उसकी लड़की साढ़े तीन साल की हो चुकी है |
पत्नी छोड़कर गई माँ का नही देख पाया चेहरा
दो मछुवारे ऐसे है जिसमे एक की पत्नी ने बच्चों कों छोड़कर दूसरी शादी कर ली , बच्चों कों बूढ़े माँ–बाप पाल रहे थे|छूटकर आने के बाद फोन करने के बाद भी मिलने नहीं आई और जब वह मिलने गया,तो मिलने से इंकार कर दिया| वही दूसरी तरफ उमेश दावरे के माँ और पत्नी की कोरोना काल में मौत हो गयी जब वह घर आय तब उसे पता चला की दोनों की मौत हो गयी है | वह अपनी माँ और पत्नी का आखिरी बार चेहरा तक नही देख पाया न उनका अंतिम संस्कार कर पाया|बच्चों कों उसका भाई पाल रहा था| दुसरे मछुवारे की पत्नी मायके में है,लाख कोशिश के बाद भी वह आने कों तैयार नहीं है |
परिजनों के आंखो में दर्द और ख़ुशी भरा है आंसू
वही संकट से गुजर रहे मछुवारों के परिजनों ने कहा की वह दाने दाने के मोहताज हो गए, मजदूरी कर किसी तरह वह घर चला रहे थे | उन्हें जब अपनों की याद आती थी, तो आंखे भर जाती थी |भगवान से वह प्रार्थना करते थे की उनके लोंग जल्दी छूटकर घर आये| अपनों से मिलने के बाद उनकी आंखो में दर्द और ख़ुशी दोनों के आंसू है| अब वह कहते है की आधी रोटी खाकर गुजरा कर लेंगे, लेकिन दुबारा समुंद्र में मछली पकड़ने के लिए नही भेजेंगे |