नई दिल्ली । कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया केंद्र सरकार के खिलाफ हल्ला बोलने जा रहे हैं. उन्होंने विधायकों और सांसदों से ‘चलो दिल्ली’ की अपील की है. सीएम बुधवार को दिल्ली के जंतर-मंतर पर प्रदर्शन करेंगे।
ये प्रदर्शन टैक्स और अनुदान सहायता के संबंध में किया जाएगा. उनका कहना है कि कर्नाटक में कांग्रेस सरकार कन्नड़ लोगों के उचित टैक्स हिस्सेदारी और अनुदान सहायता के वितरण में भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाती रहेगी।
वित्तीय अत्याचार के खिलाफ ‘चलो दिल्ली’
उन्होंने बताया है कि केंद्र सरकार के वित्तीय अत्याचार के खिलाफ ‘चलो दिल्ली’ आंदोलन है. कल सुबह 11 बजे जंतर-मंतर पर हम कर्नाटक के लोगों के उचित कर हिस्सेदारी और अनुदान वितरण में भेदभाव के खिलाफ अपनी आवाज उठाएंगे. यह आंदोलन किसी के खिलाफ नहीं है. राज्य के लोगों के हित के लिए है. सिद्धारमैया ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट शेयर करते कहा कि हम सभी से इस धरणी सत्याग्रह में भाग लेने की अपील करते हैं।
हम एक संघ प्रणाली में है सभी से सहयोग की अपेक्षा
वहीं, डिप्टी सीएम व कांग्रेस के दिग्गज नेता डीके शिवकुमार ने कहा कि ये विरोध भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ नहीं है और सभी विधायकों को पार्टी लाइनों को भूल जाना चाहिए और भाग लेना चाहिए. पूरी सरकार विरोध करेगी. हम सभी को राज्य की भलाई के लिए मिलकर लड़ना होगा. हम एक संघ प्रणाली में हैं. केंद्र सरकार को सहयोग दे रहे हैं, लेकिन हमारे साथ व्यवहार ठीक नहीं किया जा रहा है. कोविड के दौरान भी उचित राहत नहीं दी गई. भारी बारिश के दौरान भी हमें अनुदान नहीं मिला. भद्रा मेल्डंडे प्रोजेक्ट के लिए 5300 करोड़ रुपए नहीं दिए गए।
अधीर रंजन के आरोपों का वित्त मंत्री ने किया खंडन
इससे पहले सोमवार को लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा था कि देश भर में आम धारणा है कि गैर-बीजेपी राज्यों को उनके वैध बकाये से वंचित किया जा रहा है. उन्होंने आरोप लगाया कि ताजा उदाहरण कांग्रेस शासित कर्नाटक का है. केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कांग्रेस नेता के आरोपों को खारिज कर दिया. उन्होंने अधीर के आरोपों को राजनीतिक रूप से प्रेरित करार दिया।
ये उनकी पार्टी की राजनीति के खिलाफ
उन्होंने कहा कि कौन सा राज्य पसंद है और कौन सा नहीं ये उनकी पार्टी की राजनीति के खिलाफ है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बताया कि वित्त आयोग सिफारिशें देता है जिसे उन्हें लागू करना होता है, यह बिना किसी डर या पक्षपात के किया जाता है. इसलिए यह आशंका कि कुछ राज्यों के साथ भेदभाव किया गया है, एक राजनीतिक रूप से प्रेरित है।