कोलकाता। हाल ही में कलकत्ता हाईकोर्ट ने पश्चिम बंगाल में 2010 से कई वर्गों को दिए गए ओबीसी दर्जे कोअवैध करार दिया है। हाईकोर्ट की इस टिप्पणी से लोकसभा चुनाव के बीच राजनीतिक बहस छिड़ गई। मुख्यमंत्री और टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी ने अदालत के आदेश पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि वह इस आदेश को स्वीकार नहीं करेंगी और इसे उच्चतम न्यायालय में चुनौती देंगी। कलकत्ता उच्च न्यायालय के फैसले को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्ष के मुंह पर करारा तमाचा बताया है। दावा किया कि इससे ओबीसी उप-कोटा के तहत मुसलमानों को आरक्षण देने की विपक्षी गठबंधन इंडिया की चाल का पर्दाफाश हो गया है। आरोप लगाया कि विपक्षी गठबंधन इंडिया का तुष्टीकरण का जुनून हर सीमा को पार कर गया है।
बता दें, अदालत ने पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग (अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के अलावा) (सेवाओं और पदों में रिक्तियों का आरक्षण) अधिनियम, 2012 के तहत अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के रूप में दिए गए आरक्षण के लिए कई वर्गों को रद्द कर दिया। पीठ ने निर्देश दिया कि 5 मार्च 2010 से 11 मई 2012 तक कई अन्य वर्गों को ओबीसी के रूप में वर्गीकृत करने वाले राज्य के कार्यकारी आदेशों को भी इस तरह के वर्गीकरण की सिफारिश करने वाली रिपोर्टों की अवैधता के मद्देनजर रद्द कर दिया गया था।
अदालत ने कहा, इन समुदायों को ओबीसी घोषित करने के लिए वास्तव में धर्म ही एकमात्र मानदंड प्रतीत होता है, अदालत का मानना है कि मुसलमानों की 77 श्रेणियों को पिछड़े के रूप में चुना जाना पूरे मुस्लिम समुदाय का अपमान है। उप-वर्गीकृत वर्गों को आरक्षण के प्रतिशत के वितरण के लिए 2012 के अधिनियम में एक प्रावधान को रद्द करते हुए, अदालत ने कहा, ओबीसी-ए और ओबीसी-बी नामक दो श्रेणियों में सूचीबद्ध उप-वर्गीकृत वर्गों को हटा दिया गया है।
अधिनियम के प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए बुधवार को न्यायमूर्ति तपब्रत चक्रवर्ती और न्यायमूर्ति राजशेखर मंथा की खंडपीठ ने कहा, वंचित वर्गों के नागरिकों की सेवाएं, जो पहले से ही सेवा में हैं या आरक्षण का लाभ ले चुके हैं। आदेश से राज्य की चयन प्रक्रिया प्रभावित नहीं होगी।
याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाले एक वकील ने कहा कि 2010 के बाद पश्चिम बंगाल में ओबीसी के तहत सूचीबद्ध व्यक्तियों की संख्या पांच लाख से ऊपर होने की संभावना है। मई 2011 तक पश्चिम बंगाल में सीपीआई (एम) के नेतृत्व वाला वाम मोर्चा सत्ता में था और उसके बाद तृणमूल कांग्रेस सरकार ने सत्ता संभाली।