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नीतीश-लालू में टूट के कयास, लोकसभा से पहले NDA में वापसी का नीतीश कुमार ने क्यों बनाया मन

नई दिल्‍ली । जब अगस्त 2022 में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Chief Minister Nitish Kumar)ने भाजपा (B J P)का साथ छोड़ दिया तो उन्होंने भाजपा पर उनकी पार्टी जनता दल (party janata dal) को विभाजित और समाप्त करने की कोशिश करने का आरोप लगाया। उन्होंने पाला बदलकर राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और कांग्रेस के साथ सरकार बनाई। उन्होंने तीन महीने बाद यह संदेश दिया कि एक समाजवादी नेता को उनकी विरासत को आगे बढ़ाना चाहिए। नीतीश ने कहा कि राजद के डिप्टी सीएम तेजस्वी प्रसाद यादव 2025 में महागठबंधन के विधानसभा चुनाव अभियान का नेतृत्व करेंगे। जनवरी 2024 में नीतीश और तेजस्वी ने पटना में गणतंत्र दिवस समारोह में दूरी बनाए रखी क्योंकि सीएम द्वारा फिर से अपने सहयोगियों को छोड़ने और पक्ष बदलने की अटकलें चलती रहीं।

अगस्त 2022 में नीतीश ने एनडीए क्यों छोड़ा?

एक समय बिहार में एनडीए का वरिष्ठ साथी, जेडीयू खुद को सिकुड़ता हुआ और कनिष्ठ सहयोगी भाजपा से पीछे होता हुआ पाया। नीतीश भाजपा से नाराज थे क्योंकि विधानसभा में उनकी पार्टी की सीटें 2015 में 71 से घटकर 2020 के चुनावों में 43 सीटों पर आ गईं। वहीं, भाजपा की सीटों की संख्या 53 से बढ़कर 74 हो गई। राजद की 75 थी।

अपनी पार्टी के सहयोगियों के साथ निजी बातचीत में नीतीश ने लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) के नेता चिराग पासवान के द्वारा जेडीयू की सभी सीटों पर उम्मीदवार खड़ा करने के लिए भाजपा को दोषी ठहराना शुरू कर दिया। जेडीयू का मानना ​​था कि चिराग ने उनकी पार्टी के वोट काटने और उसके उम्मीदवारों को हराने के लिए भाजपा के प्रॉक्सी के रूप में काम किया था। उस चुनाव में लोजपा को भले ही एक सीट मिली, लेकिन उसने नीतीश के वोट बैंक में गंभीर सेंध लगाई।

ऐसा कहा जाता है कि नीतीश कुमार डिप्टी सीएम रेनू देवी और तारकिशोर प्रसाद को लेकर सहज महसूस नहीं करते थे। 13 साल तक डिप्टी सीएम रहे सुशील कुमार मोदी के साथ उनका तालमेल अच्छा था। जेपी आंदोलन के दिनों से ही दोनों के बीच घनिष्ठ संबंध थे। जेडीयू तत्कालीन जेडीयू नेता आरसीपी सिंह का उपयोग करके जेडीयू को विभाजित करने का भाजपा ने प्रयास किया था। जेडीयू के नेता अक्सर ऐसा आरोप लगाते थे।

आखिर क्यों एनडीए में वापस आना चाह रहे हैं नीतीश?

जेडीयू के अंदरूनी सूत्र कांग्रेस, राजद और इंडिया गुट के प्रति नीतीश कुमार के बढ़ते मोहभंग के कई कारण बताते हैं। इसका मुख्य कारण उन्हें वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था में असहजता महसूस होना बताया जा रहा है। कहा जा रहा है कि लोकसभा चुनाव से पहले जेडीयू के कम से कम सात सांसद बीजेपी के संपर्क में हैं। ये सांसद 2019 में एनडीए के सामाजिक संयोजन के कारण जीते थे। वे राजद, कांग्रेस और वाम दलों के साथ गठबंधन में ऐसे परिणाम की उम्मीद नहीं कर रहे थे। साथ ही पूर्व पार्टी प्रमुख राजीव रंजन सिंह को छोड़कर जेडीयू के अधिकांश शीर्ष वरिष्ठ नेता भाजपा के साथ गठबंधन के पक्ष में थे। नीतीश को संभवतः यह अहसास हो गया था कि यदि उन्होंने कार्रवाई नहीं की तो पार्टी विभाजित हो सकती है। पिछले महीने उन्होंने जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में ललन सिंह की जगह ली। ललन सिंह के बारे में कहा जाता था कि वह लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव के निकट हो गए थे। और यह बात नीतीश कुमार को पसंद नहीं थी।

जेडीयू ने 2019 के लोकसभा चुनावों में एनडीए के हिस्से के रूप में लड़ी गई 17 सीटों में से 16 पर जीत हासिल की थी। आंतरिक सर्वेक्षणों में उत्साहजनक परिणाम नहीं आने के कारण नीतीश ने संभवतः यह अनुमान लगाया कि उनकी पार्टी नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अपनी जीत की संभावनाओं में सुधार करेगी। जेडीयू को संभवतः यह महसूस हुआ कि अयोध्या राम मंदिर का उद्घाटन, मोदी की लोकप्रियता और उनकी सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के साथ मिलकर एक जीत का फॉर्मूले तैयार किया जा सकता है।

नीतीश कुमार ऐसे नेता थे जिन्होंने पिछले साल इंडिया ब्लॉक बनाने के लिए सभी पार्टियों को एक साथ लाने के लिए काम किया था और एक प्रमुख पद की उम्मीद की थी। लेकिन टीएमसी और आप जैसी पार्टियों की बेचैनी के बीच ऐसा नहीं हो सका। 2017 के विपरीत इस बार जेडीयू कांग्रेस पर उंगली उठा रही है। जेडीयू का आरोप है कि नीतीश कुमार की जगह कांग्रेस ने दूसरे दलों को बहुत अधिक जगह दिया। राहुल गांधी द्वारा गठबंधन के बारे में बात करने के बजाय कांग्रेस की भारत जोड़ो न्याय यात्रा शुरू करने के बाद जेडीयू को भी गठबंधन में बने रहने का कोई कारण नजर नहीं आया। इंडिया गठबंधन के एकजुट होने और बीजेपी के खिलाफ जवाबी बयान देने में विफल रहने पर नीतीश कुमार ने फिर से अपनी पार्टी के भविष्य को ध्यान में रखते हुए एक व्यावहारिक निर्णय लिया।

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