मैंने तो बस प्रेम जिया है।
जिससे कष्ट अपार मिला है ।
बचपन बीता,यौवन बीता,
कृष्ण – कृष्ण ही टेरा है।
छोड़ घराना,कृष्णमयी हो,
तुलसी माला, फेरा है ।
सजा मिली औ जहर पिया है।
मैंने तो बस प्रेम जिया है।
पुष्पों की थी,घनी वाटिका,
मांगा प्रियतम,पूज देविका।
वन-वन भटकी,संग प्रभु के,
साथ रही बन एक सेविका ।
कनक मृगा ने छल भी किया है!
मैंने तो बस प्रेम जिया है।
मैंने तो बस प्रेम जिया है।
जिससे कष्ट अपार मिला है।
डा. नीलिमा पाण्डेय,मुंबई