Saturday, November 23, 2024
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16 फरवरी को गंगा स्नान करने से होगा ये बड़ा लाभ, जानें रथ सप्तमी की विशेषता…

नई दिल्ली। मार्कंडेय पुराण के अनुसार पहले संपूर्ण विश्व में अंधेरा था। उस अंधकार में ही ब्रह्मा कमलयोनि से प्रकट हुए और उनके मुख से सबसे पहले ‘ओम्’ शब्द का उच्चारण हुआ। यह ओम् सूर्य के तेज का ही सूक्ष्म रूप था। इसके पश्चात ब्रह्मा के मुख से चारों वेद प्रकट हुए। यह चारों वेद ओम् के तेज में समा गए। आकाश में दिखाई देने वाला सूर्य इसी ओम् का स्थूल रूप है। लेकिन सूर्य का यह तेज इतना प्रचंड था कि सृष्टि के भस्म होने का डर था, इसलिए ब्रह्म की प्रार्थना पर सूर्य देव ने अपने तेज को कम कर लिया। सूर्य के प्रकट होने पर संपूर्ण विश्व का अंधकार ही नहीं मिटा बल्कि सृष्टि में जीवन का संचार भी हुआ। ज्योतिष में सूर्य को आत्मा का कारक और नव ग्रहों का राजा माना गया है। व्यवस्था के संचालन में इसे राजा यानी राष्ट्र प्रमुख और उच्च अधिकारी तथा संबंधों के निर्वहन में इसे पिता माना गया है।

सूर्य के ‘आदित्य’ नाम होने के पीछे एक कथा है। सृष्टि उत्पत्ति के समय कश्यप ऋषि की पत्नी अदिति ने कठोर तप करके भगवान सूर्य को प्रसन्न किया और वरदान मांगा कि वे उनके पुत्र रूप में जन्म लें। सूर्य ने उन्हें यह वरदान दे दिया और अपनी सात किरणों में से एक ‘सुषुम्ना’ किरण द्वारा उनके गर्भ में प्रवेश किया। अदिति के गर्भ से जब सूर्य का जन्म हुआ, उस दिन माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि थी। अदिति के गर्भ से जन्म लेने कारण सूर्य का नाम ‘आदित्य’ हुआ। सूर्य के रथ में सात घोड़े होने के कारण इसे ‘रथ सप्तमी’ कहा जाता है। इसके अलावा इस तिथि को ‘आरोग्य सप्तमी’, ‘माघ सप्तमी’, ‘अचला सप्तमी’, ‘विधान सप्तमी’ आदि नाम से भी जाना जाता है। सूर्य के रथ में— ‘गायत्री’, ‘भ्राति’, ‘उष्निक’, ‘जगती’, ‘त्रिस्तप’, ‘अनुस्तप’ और ‘पंक्ति’ नाम के सात घोड़े हैं। ये सातों घोड़े सप्ताह के सात दिनों, सात किरणों के प्रतीक हैं। सूर्य के रथ का पहिया संवत्सर वर्ष और उसमें लगी बारह तीलियां बारह महीनों को दर्शाती हैं। इस साल 16 फरवरी को रथ सप्तमी है।

रथ सप्तमी से जुड़ी एक अन्य कथा भी है। यह कथा कहती है, जब सूर्य देव को खड़े-खड़े काफी लंबा समय बीत गया तो उनके पांव दुखने लगे। तब उन्होंने भगवान विष्णु के सामने अपनी समस्या रखी। विष्णु ने सूर्य देव की समस्या को दूर करने के लिए उन्हें हीरे जड़ित एक स्वर्ण रथ दिया। इस रथ के सारथि अरुण देव थे। जिस दिन यह रथ सूर्य देव को मिला, उस दिन माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी थी। इस दिन इस रथ पर सूर्य के विराजमान होने के कारण इसे ‘रथ सप्तमी’ कहा गया।

इस दिन गंगा स्नान करके सूर्य की पूजा करने और सूर्य से संबंधित वस्तुओं का दान करने से सूर्य संबंधी दोष दूर होते हैं। यही नहीं इस दिन सूर्य के साथ-साथ उनके रथ में जुते सातों घोड़ों की भी पूजा की जाती है।

इससे जुड़ी एक अन्य कथा के अनुसार भगवान कृष्ण के पुत्र सांब को अपने बल और शारीरिक सुंदरता का बहुत अभिमान हो गया था। एक बार दुर्वासा ऋषि कृष्ण से भेंट करने आए। कठिन तप करने के कारण ऋषि दुर्वासा का शरीर बहुत ही दुर्बल हो गया था। उनके दुबले-पतले और असुंदर शरीर को देखकर सांब को हंसी आ गई। इसे ऋषि ने अपना अपमान समझा। ऋषि दुर्वासा को सांब की इस धृष्टता पर बहुत क्रोध आया और उन्होंने सांब को कुष्ठ होने का श्राप दे दिया। ऋषि के श्राप से सांब को कुष्ठ हो गया। अनेक तरह के उपचार करने पर भी यह ठीक नहीं हुआ, तब कृष्ण ने सांब को सूर्योपासना करने की सलाह दी। सूर्य की उपासना करने से सांब को कुष्ठ रोग से मुक्ति मिली, इसलिए इसे ‘आरोग्य सप्तमी’ भी कहते हैं।

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