नई दिल्ली । मद्रास हाईकोर्ट ने बुधवार को केंद्रीय मंत्री शोभा करंदलाजे से उनके उस बयान पर तीखे सवाल किए हैं, जिसमें उन्होंने बेंगलुरु के रामेश्वरम कैफे में हुए बम विस्फोट को तमिलनाडु से जोड़ा था। मंत्री के खिलाफ आरोप है कि मार्च 2024 में रामेश्वरम कैफे में हुए विस्फोटों के बाद उन्होंने कथित तौर पर कहा था कि तमिलनाडु में ट्रेनिंग लेकर लोग यहां बम लगाते हैं। होटल में भी वहीं से आए लोगों ने बम लगाया ।
रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्रीय मंत्री के बयान से आहत होकर मदुरै निवासी त्यागराजन ने शिकायत दर्ज कराई। उन्होंने आरोप लगाया कि तमिलों और कन्नड़ लोगों के बीच दुश्मनी और नफरत पैदा करने की मंशा से ऐसे आरोप लगाए गए थे। उनकी शिकायत के बाद शोभा करंदलाजे पर आईपीसी की धारा 153, 153(ए), 505(1)(बी) और 505(2) के तहत मामला दर्ज किया गया। इसी अपराध के लिए बेंगलुरु के चिकपेट पुलिस स्टेशन में एक और एफआईआर भी दर्ज की गई है।
मंत्री विस्फोट के बारे में पहले से जानते थे क्या: कोर्ट
बुधवार को न्यायमूर्ति जी जयचंद्रन ने पूछा कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) द्वारा छापेमारी किए जाने से पहले ही मंत्री विस्फोटों को तमिलनाडु के लोगों से कैसे जोड़ सकती हैं। कोर्ट ने कहा कि यदि मंत्री के पास विस्फोट के बारे में कोई जानकारी थी, तो एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में उन्हें जांच एजेंसी को इसकी जानकारी देनी चाहिए थी। हालांकि, उन्होंने ऐसा नहीं किया है।
मंत्री के बयानों का उद्देश्य दो समूहों के लोगों के बीच टकराव था
करंदलाजे के वकील ने कोर्ट से अंतरिम प्रार्थना को स्वीकार करने और चल रही जांच पर रोक लगाने का आग्रह किया। वहीं, सरकारी वकील ने प्रार्थना का विरोध किया और कोर्ट से उनके इंटरव्यू की वीडियो क्लिपिंग देखने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि मंत्री के बयानों का उद्देश्य दो समूहों के लोगों के बीच दुश्मनी पैदा करना था।
हाईकोर्ट ने फिलहाल कोई अंतरिम राहत नहीं दी, लेकिन मामले को आगे की सुनवाई के लिए 12 जुलाई तक के लिए स्थगित कर दिया। कोर्ट ने अभियोजन पक्ष से केस डायरी पेश करने को कहा है।
प्राथमिकी गलत इरादे से दर्ज की गई: मंत्री
अपनी याचिका में मंत्री ने कहा है कि प्राथमिकी गलत इरादे से दर्ज की गई थी और यह प्रक्रिया का दुरुपयोग है। उन्होंने कहा कि उन्होंने अपने इरादे स्पष्ट करते हुए और बयानों के लिए माफी मांगते हुए अपनी टिप्पणी पहले ही वापस ले ली है। उन्होंने कहा कि इसके बावजूद आपराधिक कानून लागू करना दुर्भावनापूर्ण है और संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) द्वारा गारंटीकृत भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मूल पर प्रहार है।