नई दिल्ली । पिछले 24 घंटे में राजनीतिक परिवारों में दरार के खाई बनने की दो खबरें सामने आई हैं। और दोनों ही खबरों में एक बात कॉमन है।। वो है बीजेपी।। वो कैसे आगे बताएंगे। फिलहाल एक तरफ बिहार वाले चाचा पशुपति पारस को एनडीए ने किनारे किया और पीएम मोदी के ‘हनुमान’ कहे जाने वाले चिराग पासवान को गले लगाया।
वहीं दूसरी तरफ झारखंड के सोरेन परिवार के फूट की खबरें भी पूरी तरह से सार्वजनिक हो गई। दरअसल, झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की भाभी सीता सोरेन 19 मार्च 2024 को भारतीय जनता पार्टी (BJP) में शामिल हो गई हैं।
सीता सोरेन ने दिल्ली में बीजेपी के राष्ट्रीय मु्ख्यालय में पार्टी की सदस्यता ली, इस दौरान झारखंड बीजेपी प्रभारी लक्ष्मीकांत बाजपेयी और पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव विनोद तावड़े मौजूद रहे। लोकसभा चुनाव से पहले सीता सोरेन का बीजेपी में शामिल होना, जेल में रह रहे हेमंत सोरेन के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है।
अब सवाल है कि सीता सोरेन कौन हैं? उन्होंने JMM से इस्तीफा क्यों दिया और उनके बीजेपी में जाना JMM के लिए कितना बड़ा झटका है और इस फैसले से क्या सीता सोरेन को राजनीतिक तौर पर फायदा होगा?
सीता सोरेन कौन हैं?
सीता सोरेन झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन के दिवंगत बेटे दुर्गा सोरेन की पत्नि हैं और हेमंत सोरेन की भाभी है। सीता 2009 से जामा सीट से लगातार तीन बार की विधायक हैं। वो अभी तक जेएमएम की राष्ट्रीय महासचिव थी।
उन पर 2012 के राज्यसभा चुनाव में मतदान के लिए पैसे लेने का आरोप है और वह सात महीने तक जेल में भी रह चुकी हैं। फिलहाल वो बेल पर बाहर हैं।
सीता सोरेन ने JMM से क्यों इस्तीफा दिया?
सीता सोरेन ने झारखंड मुक्ति मोर्चा से इस्तीफा देते हुए पार्टी अध्यक्ष और अपने ससुर शिबू सोरेन को एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने कहा कि उनके पति दुर्गा सोरेन के निधन के बाद, पार्टी उन्हें और उनके परिवार को पर्याप्त सहायता प्रदान करने में विफल रही।
सीता ने दुख जताते हुए कहा कि वह पार्टी में लंबे समय से उपेक्षित महसूस कर रही थीं और इसलिए उन्होंने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देने का फैसला किया है।
उन्होंने अपनी निराशा व्यक्त की और कहा, “मुझे यह देखकर गहरा दुख होता है कि पार्टी अब उन लोगों के हाथों में चली गई है, जिनके दृष्टिकोण और उद्देश्य हमारे मूल्यों और आदर्शों से मेल नहीं खाते।”
सीता सोरेनशिबू सोरेन ने हम सभी को एकजुट रखने के लिए कठिन परिश्रम किया। लेकिन अफसोस उनके अथक प्रयासों के बावजूद विफल रहे। मुझे हाल ही में यह पता चला कि मेरे और मेरे परिवार के खिलाफ भी गहरी साजिश रची जा रही है। मैं अत्यंत दुखी हूं। मैंने यह दृढ़ निश्चय किया है कि मुझे जेएमएम और इस परिवार को छोड़ना होगा। मैं अपनी प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे रही हूं। आपका और पार्टी की हमेशा आभारी रहूंगी। मेरी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, सीता सोरेन के नजदीकियों की माने तो झारखंड में हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद हुए सत्ता परिवर्तन में सीता सोरेन को तवज्जो नहीं दी गई, जिससे वो काफी नाराज थी। बताया जाता है कि उन्हें कैबिनेट में जगह देने की बात हुई थी, लेकिन चंपई सोरेन के मुख्यमंत्री बनने के बाद भी कैबिनेट में उन्हें शामिल नहीं किया गया।
हालांकि, उन्हें पार्टी की तरफ से आश्वासन दिया गया था लेकिन उनकी शिकायतें दूर नहीं की गई। जानकारी के अनुसार, वो अपने दोनों बेटी राजश्री और जयश्री को भी राजनीति में लाना चाहती थी।
झारखंड के एक सीनियर पत्रकार के मुताबिक, सीता सोरेन जयश्री के लिए लोकसभा से टिकट चाहती थीं, लेकिन कोई कनफर्मेशन नहीं मिला।
वहीं, दूसरी तरफ ये भी माना जाता है कि हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन की राजनीति में एंट्री से भी सीता का कद कम हुआ था। पति हेमंत के हिरासत में जाने के बाद से कल्पना पार्टी में एक्टिव हो गई हैं। साथ ही ये भी चर्चा है कि उन्हें गांडेय सीट से उपचुनाव भी लड़वाने की तैयारी हो रही है।
इतना ही नहीं, कल्पना सोरेन की जेएमएम संगठन में भी मजबूत पकड़ हो गई है। मुंबई में भारत जोड़ो न्याय यात्रा के समापन पर हुई INDI ब्लॉक की रैली में भी जेएमएम कल्पना के नेतृत्व में मुंबई पहुंची थी, जिससे संकेत साफ है कि पति की विरासत संभालने के लिए वो मजबूती से काम कर रही हैं।
जानकार कहते हैं कि कल्पना के एक्टिव होने से सीता को भय था कि वो भविष्य में उनको सियासी तौर पर मजबूत नहीं होने देंगी। दूसरा, कल्पना के सीएम बनने की चर्चा भी सीता को परेशान कर रही है।
हालांकि, उनके विरोधियों का मानना है कि ‘नोट के बदले वोट’ कैश मामले ने भी सीता की मुसीबत बढ़ा दी है। इसलिए उन्होंने जेएमएम से ‘बाय-बाय’ करना ही ज्यादा मुनासिब समझा।
जानकारों की मानें तो बीजेपी में जाने से सीता का फायदा हो सकता है। पहला उनको ‘नोट के बदले वोट’ कैश मामले में चल रही कार्रवाई में कुछ राहत मिल सकती है। दूसरा, पार्टी उन्हें दुमका सीट से हेमंत सोरेन के खिलाफ लोकसभा चुनाव लड़वा सकती है।
हालांकि, बीजेपी ने दुमका से मौजूदा सांसद सुनील सोरेन को दोबारा प्रत्याशी बनाया है लेकिन चर्चा है कि वहां से टिकट बदला जा सकता है। हालांकि चतरा सीट पर भी बीजेपी ने अभी कैंडिडेट के नाम का ऐलान नहीं किया है।
बता दें कि चतरा संसदीय क्षेत्र में पांच विधानसभा सीटें हैं, इनमें से तीन अनुसूचित जाति और एक अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। हालांकि अभी तक न तो बीजेपी ने और न ही सीता सोरेन ने उम्मीदवारी को लेकर कोई आधिकारिक टिप्पणी की है।
वहीं, सीता सोरेन के आने से जेएमएम को ज्यादा नुकसान हो सकता है। एक तो बीजेपी को मजबूत आदिवासी चेहरा मिल जाएगा जो तीन बार से विधायक है, जिससे पार्टी की ट्राइबल वोट पर पकड़ मजबूत होगी और दूसरा उसे हेमंत सोरेन को काउंटर करने का मौका मिल सकता है। बीजेपी सीता के बहाने हेमंत सोरेन को भाभी की इज्जत नहीं करने का आरोप लगाकर इमोशनल कार्ड खेल सकती है। साथ ही अगर बीजेपी सीता सोरेन या उनकी बेटी को लोकसभा चुनाव में उतारती है तो वो हेमंत सोरेन और ‘इमोशनल वोटरों’ के लिए ज्यादा बड़ा संदेश होगा।
राजनीतिक जानकार बताते हैं कि सीता सोरेन पार्टी में बहुत एक्टिव नहीं थीं, लेकिन लोकसभा चुनाव से ठीक पहले इस तरह का कदम उठाना, मनौवैज्ञानिक तौर पर हेमंत को कमजोर और बीजेपी को मजबूत बनाती है।