भोपाल। सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता और संविधान विशेषज्ञ (पीआईएल मैन आफ इंडिया) अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि भारत की समस्याएं विश्व व्यापी और लाइलाज नहीं हैं। इनका समाधान हो सकता है। इसके लिए कड़े कानूनों की आवश्यकता है। जमाखोरी, रिश्वतखोरी, घुसपैठ, अतिक्रमण जैसी समस्याएं केवल भारत में ही हैं। उन्होंने चीन और दुबई का उदाहरण देते हुए कहा कि इन देशों में इस तरह की समस्याएं नहीं हैं, क्योंकि वहां के कानून कड़े हैं। भारत की समस्याएं अंग्रेजों के बनाए कानूनों से नहीं खत्म होगी। भारत में एक देश एक विधान जरूरी है। सबसे पहले हमें धर्म और पंथ के अंतर को समझना होगा। हमारे पढ़े-लिखे लोग भी यह नहीं जानते कि धर्म क्या है और पंथ क्या है। धर्म जोड़ता है और पंथ तोड़ता है। हिन्दू धर्म है और बाकी सब पंथ है।
अश्विनी उपाध्याय शनिवार को हिन्दुस्थान समाचार न्यूज एजेंसी और धर्म संस्कृति समिति द्वारा भू अतिक्रमण और समान नागरिक संहिता को लेकर राजधानी भोपाल में आयोजित एक दिवसीय परिसंवाद कार्यक्रम को बतौर मुख्य वक्ता संबोधित कर रहे थे। उन्होंने भू-अतिक्रमण की बात करते हुए कहा कि कई बार हम गलत बातों को जस्टिफाई करते हैं। कहा जाता है कि ये मजार या कब्रिस्तान अवैध है। इसका मतलब यह है कि कोई मजार वैध भी है। फिर अरब देशों में कोई मजार या पक्का कब्रिस्तान क्यों नहीं है। उन्होंने कहा कि इस्लाम में पक्की मजार या कब्रिस्तान बनाना हराम है।
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि भारत में ऐसी कोई बीमारी नहीं, जिसकी कोई दवाई नहीं, ऐसी कोई समस्या नहीं, जिसका समाधान नहीं, लेकिन हम केवल समस्याओं की बात करते हैं। भारत में समस्याजीवियों की बाढ़ आ गई है। हमारा संविधान संप्रभूता की बात करता है। समान नागरिक संहिता यानी आर्टिकल 44 को परिभाषित करता है, लेकिन मैं एक देश एक विधान यानी आर्टिकल 15 की बात करता हूं, जिसमें जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र, जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव को निषेध करता है। संविधान को यथारूप पढ़ने से स्पष्ट है कि समता, समानता, समरसता, समान अवसर और समान अधिकार भारतीय संविधान की आत्मा हैं। कुछ लोग ‘समान नागरिक संहिता या भारतीय नागरिक संहिता’ का विरोध करते हैं. लेकिन सच्चाई तो यह है कि इसके लाभ के बारे में अधिकांश लोगों को पता ही नहीं है। समान नागरिक संहिता लागू होने से परिवर्तित हिन्दुओं को ही फायदा होगा।
उपाध्याय ने कहा कि भारत देवी-देवाताओं का देश है। भगवान श्रीराम, श्रीकृष्ण, गौतम बुद्ध, विवेकानंद समेत सभी संतों-महात्माओं ने भारत में ही जन्म लिया है। प्रायः किसी भी कार्यक्रम में हम कहते हैं कि धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो, प्राणियों में सद्भाव हो और विश्व का कल्याण हो। इनमें सबसे महत्वपूर्ण अधर्म का नाश है। धर्म की जय करने से अधर्म का नाश नहीं होगा, बल्कि अधर्म का नाश होगा तो धर्म की जय होगी। लेकिन हमने अधर्म का नाश करना छोड़ दिया है। अर्धम का नाश करना हमारा काम नहीं है। किसी की हत्या होने पर हम जस्टिस फार कैम्पेन छेड़ देते हैं। हम एक-एक व्यक्ति के लिए जस्टिस-जस्टिस कर रहे हैं, लेकिन किसी को जस्टिस नहीं मिला। इसके लिए व्यवस्था में बदलाव करना होगा।
उन्होंने कहा कि न्यायपालिका, कार्यपालिका, राजपालिका और खबरपालिका, ये चारों का है कि वे धर्म की जय करने के लिए काम करे। अधर्म का विनाश करने के लिए काम करे, प्राणियों में सद्भावना लाने और विश्व का कल्याण करने के लिए काम करे। जैसे अधर्म के नाश के बिना के धर्म की जय नहीं हो सकती, उसी तरह कठोर कानून के बिना भू-अतिक्रमण नहीं रुक सकता है। यह समाज का काम नहीं है भू-अतिक्रमण रोकना। शिक्षा में संस्कार हो और कानून का खौफ हो। जापान और सिंगापुर में शिक्षा में संस्कार है और कानून का खौफ है। भारत में इन देशों में इतना अंतर है कि वहां कभी सुना नहीं होगा कि वहां अवैध निर्माण हुआ होगा, लेकिन हमारे यहां ऐसा नहीं है। हमारे यहां शिक्षा व्यवस्था अंग्रेजों के जमाने की चल रही है। अंग्रेजों के जमाने के कानूनों में बदलाव जरूरी है।
उन्होंने कहा कि भारत के संविधान में लिखा है कि हम संप्रभु भारत बनाएंगे, लेकिन इस पर हमारी संसद और विधानसभाओं में चर्चा ही नहीं हुई कि संविधान कहता क्या है। इस देश में झूठों का इतना बोलबाला है कि जिन लोगों ने 75 साल से संविधान की धज्जियां उड़ाई है, संविधान के विरोध में काम कर रहे हैं, वे संविधान ले-लेकर घूम रहे हैं और जो संविधान बचाने के लिए काम कर रहे हैं, उन्हें संविधान विरोधी घोषित कर रहे हैं। संप्रभु भारत का मतलब स्वतंत्र भारत अर्थात अपना भारत। शिक्षा, कानून व्यवस्था, राज व्यवस्था सब कुछ अपना होना चाहिए।
उन्होंने कहा कि भारत में धर्मांतरण को बढ़ावा देने के लिए भारत में 300 योजनाएं चल रही हैं। भारत का हिन्दू सोचता है कि हिन्दू रहने से कोई फायदा नहीं है। धर्म परिवर्तन से फायदा है। हमारे टैक्स से पैसों और मंदिरों के पैसों से धर्मांतरण हो रहा है। भारत में मंदिरों-मठों की एक लाख करोड़ से अधिक की संपत्ति पर सरकार का अधिकार है, लेकिन किसी मस्जिद या चर्च पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि जब तक अल्पसंख्यक आयोग खत्म नहीं होगा, तब तक धर्मांतरण -मतांतरण की समस्या खत्म नहीं होगी।