नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान बेंच ने सोमवार को इलेक्टोरल बांड के जरिए राजनीतिक पार्टियों को मिले चंदे की जानकारी देने की समय सीमा 30 जून तक बढ़ाने की मांग खारिज कर दी है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) को चुनावी बांड की जानकारी मंगलवार तक दाखिल करने का आदेश दिया। कोर्ट ने निर्वाचन आयोग को चुनावी बांड की जानकारी 15 मार्च तक अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित करने का भी आदेश दिया।
सुनवाई के दौरान स्टेट बैंक के वकील हरीश साल्वे ने दलील दी कि इलेक्टोरल बांड खरीदने की तारीख और खरीदने वाले का नाम एक साथ उपलब्ध नहीं है, उसे कोड किया गया है। इसलिए उसे डिकोड करने में समय लगेगा। इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि आपकी अर्जी में ही कहा गया है कि डोनर्स की जानकारी सील्ड कवर में संबंधित ब्रांच में रखी गई है, जिसे मुंबई मुख्यालय में भेज दिया गया है। जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा कि केवल सील्ड कवर को खोलना है, दिक्कत कहां है ।
कोर्ट ने पूछा कि 15 फरवरी को आदेश दिए जाने के बाद पिछले 26 दिन में स्टेट बैंक ने क्या किया। यह बात आपकी अर्जी में नहीं बताई गई है। सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर नाराजगी जताई कि यह याचिका बैंक के असिस्टेंट जनरल मैनेजर की तरफ से दायर हुई है। एसबीआई की गंभीरता इसी बात से जाहिर हो रही है कि एक असिस्टेंट जनरल मैनेजर सुप्रीम कोर्ट के आदेश में बदलाव की मांग कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने स्टेट बैंक को चेतावनी दी कि अगर कोर्ट के आदेश का पालन नहीं होता है तो अवमानना की कार्रवाई के लिए तैयार रहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने 15 फरवरी को इलेक्टोरल बांड को असंवैधानिक करार देते हुए स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को चुनावी बांड की जानकारी 6 मार्च तक चुनाव आयोग को देने का निर्देश दिया था। चुनाव आयोग को यह जानकारी 13 मार्च तक अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित करनी थी। साथ ही कोर्ट ने राजनीतिक दलों को अभी तक कैश न होने वाले चुनावी बांड बैंक को वापस करने का भी निर्देश दिया था।
इसी के बाद सुप्रीम कोर्ट की समय सीमा 6 मार्च से 48 घंटे पहले स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर सभी पार्टियों को इलेक्टोरल बांड के रूप में मिले चंदे की जानकारी देने की समय सीमा 30 जून तक बढ़ाने की मांग की थी। स्टेट बैंक ने कहा था कि 6 मार्च तक इलेक्टोरल बांड की जानकारी निर्वाचन आयोग को देने में कुछ व्यावहारिक दिक्कतें हैं। स्टेट बैंक ने कहा था कि नाम गुप्त रखने की वजह से नाम को डिकोड करना जटिल कार्य है। स्टेट बैंक ने कहा था कि इलेक्टोरल बांड का कोई केंद्रीय डेटाबेस इसलिए नहीं रखा गया था, ताकि इसकी जानकारी किसी को नहीं मिले।